रजिया दलवी जी के शेर- " थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी, मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे....." पर मन की प्रतिक्रिया से उपजी
-गजल-
राबता जिंदगी से खुदा के चाहने से ही खत्म हो पाएगा
जल्दी थक गया गर तू उसका कर्ज कैसे चुका पाएगा
जीवन वो मालिक है बंदे जो चाकर की न सुने कभी
अमानत अल्लाह की ये अपनी मर्जी का राग गाएगा
अभी से हिम्मत हार जो बैठ यूँ जाएगा मुसाफिर
जिंदगी से तेरा बच गया वो हिसाब कौन चुकाएगा
दौड़ता रह इस जिंदगी के साथ हौसला बाँधकर
यकीन रख तेरा हिसाब फिर न बाकी रह जाएगा
जब तक वो न चाहे हिसाब किसी का न बराबर हो
जो तूने ये करने की सोची कयामत के दिन पछताएगा
अब बस भी कर जिंदगी से और न शिकवा-शिकायत कर ,
कोशिश की तो चलते-चलते 'संजय'आखिर मंजिल पाएगा
-संजय त्रिपाठी
-गजल-
राबता जिंदगी से खुदा के चाहने से ही खत्म हो पाएगा
जल्दी थक गया गर तू उसका कर्ज कैसे चुका पाएगा
जीवन वो मालिक है बंदे जो चाकर की न सुने कभी
अमानत अल्लाह की ये अपनी मर्जी का राग गाएगा
अभी से हिम्मत हार जो बैठ यूँ जाएगा मुसाफिर
जिंदगी से तेरा बच गया वो हिसाब कौन चुकाएगा
दौड़ता रह इस जिंदगी के साथ हौसला बाँधकर
यकीन रख तेरा हिसाब फिर न बाकी रह जाएगा
जब तक वो न चाहे हिसाब किसी का न बराबर हो
जो तूने ये करने की सोची कयामत के दिन पछताएगा
अब बस भी कर जिंदगी से और न शिकवा-शिकायत कर ,
कोशिश की तो चलते-चलते 'संजय'आखिर मंजिल पाएगा
-संजय त्रिपाठी
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