आज
दिनाँक 17 जनवरी,2014 का
दिन विषादमय सा प्रतीत हो रहा है क्योंकि आज प्रात: सुचित्रा सेन की मृत्यु का
समाचार मिला जिन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा से बंगला एवं हिंदी दोनों ही भाषाओं के
फिल्म जगत को नई ऊँचाई प्रदान की थी. मात्र सोलह वर्ष की उम्र में शिक्षक करुनामय
दासगुप्ता की इस बेटी रोमा दासगुप्ता का विवाह देबनाथ सेन के साथ हो गया था. रोमा
ने संगीत,नृत्य और कला की शिक्षा शांतिनिकेतन से ग्रहण की थी.
मूलतया वे गायन में रुचि रखती थीं तथा प्लेबैक सिंगर बनने की इच्छा के साथ उन्होने
कोलकाता के पार्कस्ट्रीट में स्थित एक स्टूडियो में इसके लिए आडीशन दिया. उनका चयन
हो गया था पर बाद में उसी स्टूडियो में उन्हे अभिनेत्री बनने का प्रस्ताव
मिला जिसे उन्होने तथा उनके पति ने थोडी हिचकिचाहट के साथ स्वीकार कर लिया.
इसके बाद आगे जो कुछ घटा वह अब बंगला फिल्मों का स्वर्णिम इतिहास माना जाता है.
उनकी पहली रिलीज फिल्म 'सात नम्बर कायेदी' के सह निदेशक नितीश रॉय ने उन्हें नया नाम सुचित्रा दिया. बंगाली फिल्मों
के महानायक उत्तम कुमार के साथ आगे चलकर उन्होंने हिट जोडी बनाई तथा वे
बंगाल में आदर्श सम्भ्रांत बंगाली महिला का पर्याय समझी जाने लगीं. सात पाके बाँधा, दीप जोले जाई, उत्तर फाल्गुनी, देवदास, बंबई
का बाबू, ममता तथा आँधी उनकी सुप्रसिद्ध फिल्में थीं. वे
मास्को फिल्म फेस्टिवल में 'सात पाके बाँधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीत कर बंगला फिल्मों के
लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली प्रथम अभिनेत्री बनी थीं. हिंदी
फिल्म आँधी में अपने जोरदार अभिनय के लिए वे सराही गई थीं पर नामित होने के बाद भी
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार पाते-पाते रह गई थीं. वे पद्मश्री पुरस्कार से
सम्मानित हुईं. पर जीवन के सांध्यकाल में उन्होंने चमक-दमक की दुनिया से
अपने को अलग कर लिया था. वे घर के भीतर ही रहती थीं तथा बाहर कहीं आवश्यक
होने की स्थिति में जाने पर भी स्वयं को छिपा कर रखती थीं. इस कारण उन्हें कुछ लोग
भारत की ग्रेटा गार्बो कहने लगे. यहाँ तक कहा जाता है कि दादा साहब फाल्के
पुरस्कार का प्रस्ताव पाने पर उन्होंने उसके लिए मना कर दिया था क्योंकि उसे लेने
के लिए उन्हे घर से बाहर जाना पडता. विगत वर्ष प. बंगाल की सरकार ने उन्हें बंग
विभूषण पुरस्कार प्रदान किया पर वे उसे ग्रहण करने नहीं गईं तथा इस हेतु उन्होने
अपनी बेटी मुनमुन सेन को भेज दिया था. वस्तुत: उनका नश्वर संसार से मोहभंग
हो गया था तथा वे आध्यात्म की तरफ उन्मुख हो गई थीं. किसी ने उन्हे बेलूर मठ में,
जहाँ वे देर रात गए या फिर भोर में आया करती थीं,
कहते हुए सुना था- 'आमी पुनरजन्मो
चाई न.ठाकुर आमी जेनो तोमार चरने थाई पाई ( मुझे पुनर्जन्म नहीं चाहिए.भगवान मुझे
अपने चरणों में जगह दो).' गुलजार साहब के अनुसार वे
पांडिचेरी स्थित महर्षि अरविंद आश्रम में भी जाया करती थीं. उन्होने बेलूर
मठ के स्वर्गीय भरत महाराज के निर्देशानुसार स्वामी बीरेश्वरानंदजी से दीक्षा ले
ली थी. पर जब तक वे अभिनय जगत में रहीं उन्होने अपनी शर्तों पर काम किया तथा
बांगला जगत में महानायिका कहलाईं. वे जीवंत अभिनय के साथ अपनी बंगला तथा हिंदी फिल्मों में सदैव अस्तित्वमान
रहेंगी भले ही उन्हें पुनर्जन्म की इच्छा न रही हो .
पर सुचित्रा सेन की मृत्यु से भी अधिक
दु:खद सुनंदा पुष्कर के दिवंगत होने का समाचार है क्योंकि सुचित्रा
ने तो अपने जीवन को पूर्णता के साथ जिया था पर सुनंदा ने अभी कुछ ही समय पहले जिस उम्र में सुचित्रा सेन संसार से विमुख होने लगी थीं लगभग उसी उम्र में शशि थरूर से विवाह कर ( दोनों के जीवन का विरोधाभास देखिए) अपना जीवन नए
सिरे से प्रारंभ किया था. उनकी मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में
दिल्ली के होटल लीला में हुई पाई गई है जिसके कारणों का खुलासा शायद दो-एक दिनों
में पुलिस कर सके. पर जिस तरह पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के द्वारा अपने
पति शशि थरूर को किए जा रहे ट्वीट को लेकर उन्होंने अपना रोष व्यक्त किया था; उसके बाद
पति-पत्नी द्वारा सब कुछ ठीक-ठाक होने का स्टेटमेंट जारी किया जाना, रात
में उनका होटल में आकर चेक-इन करना और अगले दिन मृत पाया जाना यह सब रहस्यमय और
दु:खद है. सुनंदा पुष्कर का अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व था और उनके सुप्रसिद्ध
पति की उपस्थिति में भी वह दबा नहीं बल्कि अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने में
उन्होंने कोई संकोच नहीं किया. यहाँ तक कि कुछ दिनों पहले उन्होंने जम्मू
काश्मीर में स्त्रियों के अधिकारों को लेकर नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त
विचारों का समर्थन किया था. देश के लिए सशक्त व्यक्तित्व वाली महिलाएं निधि
की तरह हैं जिनका असमय काल के गाल में चले जाना क्षतिपूर्ण है. उनकी हत्या की गई, अथवा
व्यथित होकर उन्होंने स्वयं अपना जीवन ले लिया इस बात की जाँच तो पुलिस करेगी पर
जो कुछ हुआ वह दु:खद है. सुनंदा की मृत्यु एक यह प्रश्न भी उपस्थित करती है कि क्या किसी भी उद्दाम प्रेम का अंत टूटन के साथ ही
होता है.
हम सब उक्त दोनों सशक्त नारी
व्यक्तित्वों को मात्र श्रद्धाँजलि दे सकते हैं और उनकी आत्माओं को शांति
मिले तथा उनके परिवार के लोगों को ईश्वर दु:ख सहने की
शक्ति एवं धैर्य प्रदान करें यही प्रार्थना मात्र कर सकते हैं.
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