नीचे कुछ कल्पित स्थितियाँ और वार्तालाप दिए जा रहे हैं जो पूरी तरह काल्पनिक हैं और इनका उद्देश्य मात्र सहज हास्य है, सच्चाई से इनका कोई लेना-देना नहीं है. अगर इनमें से किसी काल्पनिक कथ्य या चरित्र की किसी तथ्य या व्यक्ति के साथ कोई साम्यता पाई जाती है तो वह महज इत्तफाक है जिसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है.
सत्ताधारी पार्टी
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
के हाल ही में राजधानी में संपन्न
दिल्ली अधिवेशन में नन्हे बाबा ने कहा
कि मुख्य विपक्षी
पार्टी के लोग मार्केटिंग के
काम में
माहिर है. इतने माहिर
कि वे गंजों
को भी कंघा बेच
सकते हैं. दिल्ली
में सत्ता में आई
पार्टी की ओर
इशारा करते हुए
उन्होंने कहा कि नए
लोगों ने तो
गंजों का बाल
काटने के लिए
सैलून ही खोल
दिया है. एक
समाचार के अनुसार नन्हे बाबा के आस-पास जो
भी गंजे थे वे
उनका बयान सुनकर अपनी- अपनी
बगलें झाँकने लगे
क्योंकि उन्हें लगा कि नन्हे बाबा को कहीं
ये न लगे कि वे कंघा
खरीदने के लिए तैयार
हैं या फिर कंघा खरीद
चुके हैं. कुछ ने
तो यूँ ही
अपनी चाँद पर
हाथ फिरा लिया
ताकि नन्हे बाबा ये समझ
जाएं कि वे
यूँ ही हाथों से सर
सहला लेते हैं
और कंघे की
जरूरत नहीं समझते. कुछ
के पास टोपियाँ थीं जो उन्होने
झटपट जेब से
निकाल कर सर पर
लगा लीं. कुछ
गंजे जो पहले
से ही टोपी लगा
कर आए थे प्रसन्न
होकर मुस्करा रहे
थे कि देखो
हम ही यहाँ
सबसे होशियार हैं, हम
भी गंजे हैं नन्हे
बाबा को पता ही
नहीं चलेगा.
मैंने मुख्य विपक्षी दल के एक गंजे हो चले बंधु से
पूछा- “आपने नन्हे बाबा की
बात सुनी, आखिर
आप लोग गंजों
को कंघा क्यूँ बेच
रहे हैं?” वे
गुस्से में आ गए
और कहने लगे- “आप इनसे
ये तो पूछिए
कि पिछले दस सालों से
देश की जनता
को गंजा कौन
कर रहा है और फिर
जब इन्होंने गंजा
किया है तो हम
भी लोगों से कह रहे
हैं कि अखबारों में
‘हेयर फैरी’ और ‘हेयर किंग’ तेलों
के विज्ञापन पढो
और अपनाओ, जल्दी
ही तुम बाल
वाले हो जाओगे
फिर उसके बाद तो तुम्हे
कंघे की जरूरत
पडेगी ही और
लोगों को हमारी
बात पर अगर
यकीन हो रहा
है तो इसमें
हमारी क्या गलती है ? जो पैसे वाले
हैं उनको हम
डॉ. खतरा और डॉ.
ढाल के पास
भेज रहे हैं
जिन्होने अपना बैंक बैलेंस
बढाने के लिए पूरे
भारत के पैसे वाले गंजों को बाल
वाला बनाने का प्रण
किया है. इससे वे भी हमारे
कंघे खरीद रहे हैं. अब बोलिए, गंजा उन्होंने बनाया और फिर
भी हम कंघे
बेचे ले रहे हैं
तो इसमें क्या गलती हमारी है ? आखिर जिसने
गंजा बनाया उसी से गंजा हुआ
इंसान कंघा क्यूँ
लेगा ?" इसके बाद
उन्होने अपनी जेब से
कुछ रंगबिरंगे कंघे
निकाले और उनमें से एक अपने सर पर बचे दो-चार बालों में
फिरा कर दिखाने
लगे. फिर हमारी तरफ कंघे बढाकर
बोले - “ले लीजिए
आप भी इनमें
से कोई एक
जो पसंद हो, कीमत बस
यही एक वोट.”
मैंने कहा - “देखिए
प्रभुवर! मेरा तो
सर अभी पूरी
तरह खाली हुआ
नहीं है ,अभी आधे - तीहे बाल
बचे हुए हैं . जरा
नए वाले सैलून में
बाल कटवा कर आता
हूँ फिर विचार
करता हूँ.” यह
कह कर मैं
नए वाले हेयर
कटिंग सैलून की
तरफ चला गया.
वहाँ
मैंने देखा बिल्कुल
नया साइन बोर्ड लगा हुआ
था- “कजरारे – कजरारे हेयर कटिंग
सैलून.” साइनबोर्ड देखकर मैं
जरा ठिठका पर
फिर अंदर चला
गया. वहाँ अजीब
नजारा था. दो
कुर्सियाँ शीशे के आगे लगी
हुई थीं और
दोनों पर दो
गंजे बैठे हुए
थे. कुर्सियों के
पीछे एक व्यक्ति गले
में मफलर डाले
और सर पर
टोपी लगाए शायद बाल काटने की
तैयारी में एक हाथ में
कैंची लिए हुए था .
उससे मैंने पूछा-
“भाई साहब क्या
यहाँ बाल वालों के
भी बाल कटते
हैं या सिर्फ गंजों की ही
सेवा होती है ?” उस व्यक्ति
ने अपने होठों पर एक उँगली रखकर मेरी तरफ
देखा और चुप रहने का
इशारा किया. इसके बाद वह
बडी तेजी से
कैंची लेकर गंजे
आदमी के सर
की तरफ लपका.
मैं डर गया.
पर उस व्यक्ति
ने अपनी उस
कैंची से जैसे झपट्टा
सा मारते हुए कैंची के
बीच एक मक्खी को पकड
लिया. मैंने विरोध
प्रकट किया- “ये क्या तरीका
है ? कहीं इन गंजे भाई साहब
के सर में
चोट लग जाती
तो ?”
“तुम
नहीं समझोगे” वह बोला,” मैं भ्रष्टचार
मिटा रहा हूँ, भ्रष्टाचार.”
“ऐसे
कैसे भ्रष्टाचार मिटेगा ”- मैंने कहा.
“जो
मुझे दिखता है
वह तुम्हें नहीं दिखता. यह मक्खी
इन सज्जन के
सर पर बैठकर किसी
दूसरी मक्खी को
फोन पर कह रही
थी कि तुम्हारे लिए एक बढिया
खाली प्लाट देखा
है. मेरा कमीशन दो
तो पता बता
देती हूँ, आकर कब्जा
कर लो” .
“पर
फोन? वो भी
मक्खी के पास ! ”- मैंने कहा.
“कहा
न, जो मुझे
दिखता है वो
तुम्हें नहीं दिखता. अति सूक्ष्म यंत्र
धारण कर रखा है
उसने” –वे बोले. फिर उन्होने
मुझे एक इयरपीस
जैसा कुछ दिया
और बोले- “इसे
अपने कानों में लगा
लो, जो भी षडयंत्रकारी तुम्हारे पास
आकर फुसफुसाएंगे, वे
मच्छर हों या
मक्खी ,उनकी बात सुन
और समझ सकोगे.”
मैंने इयरपीस अपने
कानों में लगा
लिया. तभी मैंने देखा कि
मेरे सर पर
छोटी और बडी दो मक्खियाँ आकर
बैठ गईं. थोडी ही देर
में
मुझे अपने कानों में
आवाज आने लगी – “ माँ, ये किनारे
वाली सडक तो
चौडी है.”
“हाँ बेटी, पर
पहले यहाँ पगडंडी थी जो अब
सडक बन गई
है. फिर भी
पूरा प्लाट खाली
होने में अभी
कुछ साल लग जाएंगे “
“ तो
भी देखकर रखते
हैं माँ, जगह
अच्छी है.”
अब तक
मैंने देखा कि
टोपी मफलर वाले
सज्जन कैंची लेकर मेरे
सर की तरफ
संभवत: भ्रष्टाचार मिटाने की
नीयत से लपक
रहे हैं. मैंने
सैलून से नौ दो
ग्यारह होने की
नीयत से दौड लगा दी. पर
सैलून के बाहर टोपी
लगाए हुए और हाथ
में झाडू लिए हुए एक
सज्जन ने मुझे
पकड लिया और बोले - “ऐसे
कैसे भाग रहे हो, अरे टोपी तो
लगवाते जाओ.”
मैंने अनुनय
की - “ भाईजान मैं अभी
टोपी नहीं लगवाऊँगा. फिर किसी दिन
के लिए
छोड दीजिए.जरा जल्दी
में हूँ ”.
“तो फिर
मेरी एक कविता ही सुनते
जाओ”
“क्या बकवास
है” मैंने कहा.
“बकवास नहीं है, विश्वास करो ”
“पर बताया
न, मैं जरा जल्दी
में हूँ ”
“तो टोपी ही पहनो.”
मैंने उनके
आगे शीश नत कर दिया
और उन्होने झटपट मुझे टोपी
पहना दी. “अब तो
बख्श दो प्रभुवर” – मैंने कहा.
“ठीक
है, जाओ पर आज शाम को
मेरी ताजा रचना ‘राजकुमार और
अमेठी’ सुनने आ जाना ” वे
बोले.
मैं वहाँ
से सरपट भाग
निकला कि कहीं अंदर से
कोई कैंची लेकर मेरी
तरफ भ्रष्टाचार मिटाने की फिराक
में न आ जाए. सुना है इस सैलून के
मुरीद आजकल आधी रात
गाहे- बगाहे किसी के
भी घर में; कौन देशी है कौन विदेशी , कौन महिला है
कौन पुरुष इसका विचार
किए बिना भ्रष्टाचार मिटाने के
लिए घुस जाते हैं.
जैसे ही
सडक पर आया
तो देखा नन्हे बाबा गाडी में बैठकर आ
रहे थे. उनके पीछे पूरा अमला
चला आ रहा था. मुझे देखकर उन्होने
गाडी रोक दी , और बोले- “ कजरारे
सैलून से आ रहे
हो?” शायद उन्होने मुझे सैलून
की तरफ से आता
देख लिया था.
“हाँ, पर आप
पूछ क्यूँ रहे हैं ?”
“जनता को
कितना समझाता हूँ,समझती नहीं.”
“नन्हे बाबा ! जब दूसरे गंजों
को कंघा बेच
रहे हैं और
उनके लिए सैलून
खोल रहे हैं तो आप
भी उनके लिए
कुछ क्यूँ नहीं करते?” मैंने
कहा.
“ क्या
करूँ?” वे त्यौरियाँ चढा
कर बोले.
“आप
कुछ नहीं तो
कम से कम उन्हें चम्पी करने वाला
तेल ही बेचो.
उन्हे बताइये कि ठंड
के दिनों में ये
तेल दिमाग में
गर्मी पहुँचाएगा और
गर्मी में दिमाग को ठंडा
रखेगा. नूतनरत्न तेल की
मॉडलिंग करने वाले हीरो तो आपकी
पार्टी से जुडे रहे
हैं. उनका अनुभव भी
आपके काम आएगा.”
“ गुड आइडिया, पय्यरजी इसे नोट
कीजिए.” नन्हे बाबा ने
पय्यरजी को इशारा
किया.
“सर
मुझे ये बेचने-बाचने
के चक्कर में
मत लगाइए. मैं दक्कन का
खानदानी ब्राह्मण हूँ. ऐसे ही देखिए, मैंने किसी को
चाय बेचने का आफर
क्या दिया, बवेला मचा हुआ
है.” पय्यरजी बोले.
“अरे भूल
जाओ ये झूठे
खानदानी किस्से. जमाना मार्केटिंग का है. तुम
बूढों के साथ यही समस्या है. आज
भी गुजरे हुए जमाने में
जीते हो. नहीं
सुधरोगे तो ये आम आदमी हमें
उठाकर डस्टबिन में
फेक देगा. इसलिए इसकी
बात सुनो और
तुम चम्पी के
तेल की गंजों
को मार्केटिंग करने
में लग जाओ.”
“सर-सर,यस सर-यस सर.जरूर-जरूर सर.
मैं अभी तुरंत
ही ये काम
शुरू कर दूँगा.”
“गुड!” नन्हे बाबा पय्यरजी
की पीठ ठोंककर
बोले. पय्यरजी गदगदायमान हो गए.
इसके बाद नन्हे
बाबा ने अपने अमले
को आगे रवाना
होने का इशारा किया और
मुझे बाय करते हुए
आगे बढ गए.
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