नीचे कुछ कल्पित स्थितियाँ और वार्तालाप दिए जा रहे हैं जो पूरी तरह काल्पनिक हैं और इनका उद्देश्य मात्र सहज हास्य है, सच्चाई से इनका कोई लेना-देना नहीं है. अगर इनमें से किसी काल्पनिक कथ्य या चरित्र की किसी तथ्य या व्यक्ति के साथ कोई साम्यता पाई जाती है तो वह महज इत्तफाक है .
स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी की बकरी के दूध की काफी चर्चा रहती थी. सत्तर के दशक में रामाराव आदिक द्वारा विमानयात्रा के दौरान रंगीन पेय पदार्थ की बारंबार माँग और उसके बाद विमान की परिचारिकाओं के साथ उनके उलझने के साथ भारतीय राजनीति में नए तत्व की लोकप्रियता का संकेत मिला. इसकी बढी हुई लोकप्रियता को देखते हुए ही शायद अदम 'गोंडवी' को यह पंक्तियाँ लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई - 'आया है रामराज विधायक-निवास में,काजू भुने प्लेट में ह्विस्की गिलास में'॥
स्वतंत्रता के पहले गाँधीजी की बकरी के दूध की काफी चर्चा रहती थी. सत्तर के दशक में रामाराव आदिक द्वारा विमानयात्रा के दौरान रंगीन पेय पदार्थ की बारंबार माँग और उसके बाद विमान की परिचारिकाओं के साथ उनके उलझने के साथ भारतीय राजनीति में नए तत्व की लोकप्रियता का संकेत मिला. इसकी बढी हुई लोकप्रियता को देखते हुए ही शायद अदम 'गोंडवी' को यह पंक्तियाँ लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई - 'आया है रामराज विधायक-निवास में,काजू भुने प्लेट में ह्विस्की गिलास में'॥
पर इन दिनों भारतवर्ष की
राजनीति में चाय और चाय वाला लडका बहुचर्चित हो गए हैं. चाय के बहाने चौंसठ
वर्षीय राजनीतिज्ञ को खुद को लडका कहने का अवसर प्राप्त हो रहा है. इस तरह उसके तथा सत्ताधारी दल के नन्हे बाबा के बीच उम्र का फर्क समाप्त हो गया है और दोनों वय की दृष्टि से बराबरी पर आ गए हैं. दूसरे, हमारे वे भाई जो गौ माता की रक्षा के लिए सदैव समर्पित रहने की बात करते हैं, अब यह भूलकर कि हमारे
पूर्वज आर्य अन्न आदि न मिलने पर गौ और दुग्धपान पर निर्भर रहा
करते थे और शायद इसीलिए गौमाता के प्रति इतने कृतज्ञ रहा करते थे; इन दिनों चाय के अनुरागी बन
गए हैं. जैसे गाँधीजी ने नमक के सहारे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला
दिया था, वैसे ही इन्होने चाय के सहारे कांग्रेसी राज की चूलें हिलाने
के मंसूबे बाँध लिए हैं. और तो और, हमारे योग- गुरू बाबा भी यह भूल गए हैं कि कैफीन और टैनिन से युक्त चाय सदृश द्रव
पीना और पिलाना ठीक नहीं है तथा चाय वाले
लडके के समर्थन में घूम रहे हैं.
सत्ताधारी दल के नन्हे बाबा अपने सिपहसालारों से परेशान हैं जो
रह-रह कर चाय वाले लडके को उकसाते रहते हैं. एक साहब ने चाय वाले लडके
को अपनी पार्टी के अधिवेशनों में चाय बेचने का आफर तक दे डाला. पर नन्हे
बाबा यह सोचकर परेशान हैं कि चाय वाले लडके ने यदि सचमुच यह आफर वैसे
ही मान लिया जैसे अटलबिहारी बाजपेयी अखबारों में शरीफ के न्यौते की खबर पढकर लाहौर
चले गए थे; और उनके अधिवेशनों में अपने साथी - बराती साथ
लेकर (जो 'मोदी फार
पी एम' की भगवा
टोपी लगाए रहेंगे) , चाय
बेचने पहुँच गया तो क्या होगा. सारे टी वी और अखबार वाले तो उसी की कवरेज करने और इंटरव्यू लेने में
लग जाएंगे और अधिवेशन
धरा रह जाएगा.
चाय वाले लडके का इन दिनों सीने के माप पर बहुत जोर
है. उसने गोरखपुर में यू. पी. के नेताजी को जो खुद कभी पहलवान थे, चुनौती देने की हिमाकत कर डाली कि पहले
छप्पन इंच की छाती लाओ फिर उत्तर प्रदेश के विकास की बातें करो. नेताजी की पार्टी
ने अभी थोडे ही दिनों पहले सैफई महोत्सव कर विकास का नमूना पेश किया है जिसे चाय
वाले लडके ने नजरअंदाज कर दिया. सैफई के पास में ही चंबलघाटी है जहाँ के डाकुओं की
हिम्मत के नमूने कभी बालीवुड की फिल्में पेश किया करती थीं. इसलिए यह बडा ही
स्वाभाविक है कि चाय वाले लडके के छाती सबंधी बयान पर नेताजी की पार्टी को चंबल के
डाकू याद आ गए.
चाय वाला लडका यह भी कह रहा है कि
इन दिनों हर चाय वाला सीना तान कर घूम रहा है. मेरे ख्याल से
चाय वाला लडका अगर यह कहता कि हर चाय पीने वाला सीना तान कर घूम रहा
है तो ज्यादा अच्छा होता. क्योंकि यह इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल जैसा हो
जाता जिसकी जद में हिंद महासागर समेत पूरा भारतवर्ष होता (बाबा रामदेव जैसों को छोडकर जो चाय नहीं पीते)
जबकि सिर्फ चायवालों की बात करना शार्टरेंज मिसाइल जैसा है जिसकी पहुँच पाकिस्तान के क्रॉस बॉर्डर एरिया तक ही है.
अपने घर के पास चाय बेचने वाले जुम्मन चाचा को कल सुबह जब मैं टहलने
जा रहा था, गौर से देखा कि क्या उनका सीना तना हुआ है. पर मुझे
ऐसा कुछ नहीं लगा. आखिर मैंने हिम्मत कर जुम्मन चाचा से पूछ ही डाला-
"चाचा सुना है , पूरे भारत में चाय वाले
सीना ताने घूम रहे हैं,पर
आपके साथ तो मुझे ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा."
चाचा कहने लगे-" सीना
क्या खाक तना रहेगा? इस मँहगाई
के जमाने में चाय बेचकर परिवार और पेट पाल
रहा हूँ. घर में बीमार बूढी माँ है, दो जवान बेटियाँ शादी
करने को हैं, दो लडके बेरोजगार हैं. बडा
लडका गाहे- बगाहे दूकान पर आकर मदद करने लगा
है, पर दूसरा मुहल्ले के निठल्लों के साथ घूमने लगा है. सबसे
छोटा बेटा पढने में अच्छा था, सो इंजीनियरिंग कालेज चला गया है.
पर कर्जा लेकर उसका एडमीशन करवाया, अब पढाई का खर्चा उठाते-उठाते परेशान हूँ. ऊपर से मुजफ्फरनगर
में दंगों के शिकार कुछ रिश्तेदार घर पर आ
बैठे हैं जो वापस जाने को तैयार नहीं. अब तुम्ही
बताओ मेरा सीना तना कैसे रह सकता है.”
मैंने कहा-“चाचा आपने इतना परिवार
क्यूँ बढाया? इस मँहगाई के
जमाने में पाँच बच्चों का परिवार ? कभी फैमिली प्लानिंग के बारे
में नहीं सोचा?”
“नए जमाने के लडके हो सो यही सब
बातें करोगे. हम यहाँ चाय की दूकान पर झख मारते कि फैमिली प्लानिंग वालों के पीछे घूमते?”
मैंने अपने मन में सोचा कि मुख्य विपक्षी पार्टी सारे चाय के खोखों
को साइबर सेंटर में तब्दील करने को सोच रही है,वह हर चाय के खोखे पर एक
फैमिली प्लानिंग एडवाइजरी सेंटर खोलने को क्यूँ नहीं सोचती. मैंने बातचीत आगे बढाई-
“ चाचा आप अपने निठल्ले वाले लडके
को पॉलिटिक्स में क्यूँ नहीं उतार देते? सुना है पॉलिटिक्स में
ऐसे लोगों की काफी पूछ है.”
“अरे बेटा मेरा लडका निठल्ला है
गुंडा नहीं है. पॉलिटिक्स के लिए गुंडई आनी जरूरी है. दूसरे लडका अगर कहीं किसी इलेक्शन
में खडा हो गया तो मेरा घर-बार तो बिक जाएगा.”
“चाचा आजकल एक नई पार्टी आ गई है जो सदाचार की पक्षधर है .
ये नए-नए लडकों को भी टिकट दे रही है. दूसरे इसके उम्मीदवारों को इलेक्शन लडने के लिए
ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती और ये चंदे से भी चुनाव लड लेते हैं.”
“अरे उसी नई पार्टी की बात कर रहे
हो जिसके मुख्यमंत्री एक-दो रोज पहले रजाई ओढकर अनशन पर बैठे थे. खुदा न खास्ता मेरा
लडका कहीं उसके फेर में पड गया और अनशन पर बैठ गया तो घर पर बैठी मेरी बुढिया खाना-पानी
छोड देगी और रो-रोकर जान दे देगी. सुबह-शाम घर पर जो दो रोटी बनी-बनाई मिल जाती है
उससे भी हाथ धोऊँगा. मेरा सर बहुत खा चुके हो, लो ये चाय पिओ , पैसा देने की जरूरत नहीं है पर अब मेरी जान मत खाओ और धंधा-पानी करने दो.”
“ पर चाचा मैं चाहता हूँ कि आपका
सीना चौडा और तना दिखाई दे.”
“ बेटा हुक्मरानों से जा कर कहो
कि मँहगाई के हालात काबू कर जीने लायक माहौल
बनाएं, दंगे-फसाद चोरी- डकैती और बलात्कार न होने दें, बिजली-पानी और रोजगार नसीब कराएं; फिर मेरा तो क्या, हर हिंदुस्तानी का सीना चौडा और तना
दिखाई देगा.”
मैंने चाचा की इस बात पर उनके आगे
सर झुका दिया-“हर हिंदुस्तानी यही ख्वाहिश रखता है चाचा!”
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