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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

आँखें तुम्हारी (कविता)

                     आँखें तुम्हारी
          ( 12 वर्ष पहले लिखी गई कविता )

झील सी गहरी आँखें तुम्हारी इस दिल में घर कर गईं।
चपल आँखें तुम्हारी सरे महफिल क्या-क्या कह गईं।
हिरणी सा जादू समाया है तुम्हारे कजरारे नैनों में।
अपनी आँखों से तुम इस काफिर को निष्प्राण कर गईं।।

यायावरी आँखें तुम्हारी इन आँखों से टकराती रहीं।
सागर सा इक लहराता रहा, मौजें भिगो-भिगो जाती रहीं।
हीरे सी आँखें तुम्हारी ,हैं खुदा की दी हुई अनमोल नेमत।
हूँ मैं खुशकिस्मत जो नैनों की दौलत तुम लुटाती रहीं।।

समंदर सी आँखों में तुम्हारी यह दिल डूबता उतराता रहा।
उन आँखों से अमृत छक कर यह नई जिंदगी पाता रहा।
खुदा की कसम है तुम्हें, न धोना कभी आँखों का काजल ।
खंजन से श्वेत- श्याम नैनों पर किसी का दिल है जाता रहा ।।
     - संजय त्रिपाठी

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